Tuesday, September 30, 2008

जोधपुर भगदड़: अव्यवस्था का परिणाम


सरकारों की जिम्मेदारी बनती थी कि शरदीय नवरात्रि के आरंभ के पूर्व ही सुरक्षा व्यवस्था का ठीक तरह से जायजा लिया जाता, लेकिन जोधपुर स्थित चामुंडा देवी मंदिर में हुई भगदड़ ने सरकार की कानून-व्यवस्था के समक्ष सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। आज नवरात्रि का पहला दिन था और पहले दिन ही रोंगटे खड़े करने वाली घटना घटित हो गई। यदि जिला व पुलिस प्रशासन ने आने व जाने वालों के रास्ते अलग-अलग कर दिए होते और साथ में एक बात और ध्यान देने की है कि जब भी भीड़ होने की आशंका हो तब कोशिश करनी चाहिए कि भीड़ को कम आने दें और अंदर आए हुए श्रद्धालुओं को ज्यादा से ज्यादा बाहर निकालना चाहिए। पूजा स्थल पर ज्यादा देर तक किसी को रोककर खड़ा नहीं करना चाहिए। मैं विव्श्रास के साथ कह सकता हूं कि भीड़ वाले जगहों को आराम से नियंत्रण में किया जा सकता है। इलाहाबाद कुंभ मेले में इसी पद्धति को अपनाया जाता है। आपने देखा होगा कि करोड़ों लोग बिना किसी अनहोनी घटना के स्नान करते हैं। आज की घटना राजस्थान प्रांत के जोधपुर में पहाड़ी की चोटी पर स्थित विख्यात मेहरानगढ़ किले में बने चामुंडा मंदिर में भगदड़ में 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी है और सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए। सरकार और प्रशासन का वही रटा-रटाया वाक्य कि राहत कार्य में कोई कसर नहीं छोड़ूगा और प्रभावित लोगों तथा परिवारों की हर संभव सहायता की जाएगी। यह स्तब्धकारी घटना है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पवित्र स्थल पर और त्योहार के मौके पर ऐसी घटना हुई। इस व्यवस्था को संभालने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए। सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे इस तरह की घटना की पुनरावृति न हो।

Sunday, September 28, 2008

दिल्ली बनी आतंकी नगरी

दिल्ली में कब तक बम धमाके गूंजते रहेंगे। कब तक निर्दोषों की हत्याएं होती रहेंगी। कब तक आतंकी यहां शरण लिए रहेंगे। दिल्ली के माथे पर काले शनिवार के धब्बे का लगा कलंक कब मिटेगा। मैं आप को बता दूं कि यहां तीनों बम धमाके शनिवार के ही दिन हुए हैं। आखिर आतंकियों ने शनिवार का ही दिन क्यों चुना। दो सप्ताह पहले ही यहां सीरियल बम धमाके हुए थे। इसकी गुत्थी अभी तक सुलझ भी नहीं पाई थी कि दिल्ली के खाते में एक और धमाका आया। पुलिस के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है। पुलिस को इस चुनौती को स्वीकार करनी पड़ेगी। उन्हें इसकी लड़ाई एक नई रूप रेखा बनाकर लड़नी पड़ेगी। योग्य व अनुभवी पुलिस वालों को इस टीम में शामिल कर एक योद्धा के रूप में काम करना होगा। मेरा आतंकियों के लिए भी एक सुझाव है कि वो अपने सारे हथियारों को जल्द से जल्द डाल दें। अच्छे मार्गो को अपनाएं। इस मार्ग पर चलने से न सिर्फ सुख शांति मिलती है बल्कि उम्र भी बढ़ती है। क्योंकि तब आप किसी का अहित नहीं करते हैं।

Tuesday, September 23, 2008

पैर की जूतियां भी घिस जाती हैं

देश में लोग न सिर्फ मंहगाई की मार झेल रहे हैं बल्कि भ्रष्ट अधिकारियों व नेताओं के यहां चक्कर काटते-काटते पैर की जूतियां भी घिस जाती हैं पर काम नहीं होता। यदि आपको अपनी जूतियां नहीं घिसवानी हों तो काम के बदले पैसा देना पड़ेगा। करोड़ों रुपयों की सरकारी योजनाओं को विकास के लिए बनाई जाती हैं, लेकिन गांवों तक पूरा पैसा पहुंचता ही नहीं है। सूखा, बाढ़ के नाम पर भी केंद्रीय सहायता राज्यों को दी जाती है, उसको भी नेता व अधिकारी मिलकर बंदर बांट कर लेते हैं और दिखावे के नाम पर जनता को पैसा दे दिया जाता है। जनता के नुकशान की भरपाई होना तो दूर की बात है, जीने के लिए भी पैसा नहीं मिल पाता। विकास कि नाम पर देश में कई योजनाएं चल रही हैं लेकिन जनता को सीधे लाभ नहीं मिल पा रहा है। गांवों के विकास के नाम पर बनी योजनाओं का पैसा कहां चला गया। बीस साल पहले गांव जहां थे आज भी वहीं पर हैं। गांव में न तो पानी निकासी के लिए समुचित नालियां हैं, न ही पक्की सड़कें हैं, न ही स्कूलों और अस्पतालों की समुचित व्यवस्था है, बिजली की पर्याप्त आपूर्ति नहीं है। हम बात करते हैं गांवों के समुचित विकास की। लाल किले के प्राचीर से भाषण दिया जाता है गांवों के विकास पर। आम बजट पेश होता है गांवों के विकास पर साठ फीसदी खर्च होगा। आप खुद ही देखिए क्या गांवों में वास्तव में इतना बड़ा बजट पहुंचा है। यदि पहुंचा होता तो आज गांवों की वह दुर्गति नहीं होती जो आज है। लोग गांव छोड़कर शहरों की तरफ आ रहे हैं बेहतर जीवन यापन के लिए। बेहतर जीवन जीना किसे अच्छा नहीं लगता है। जब वोट मांगने का समय आता है तभी ढ़ेर सारे नेताओं के दर्शन ढ़ेर सारे वायदों के साथ गांवों में होते हैं। अपना उल्लू सीधा करने के बाद फिर वही ढाक के तीन पात। तभी तो भारत भ्रष्टाचार के मामले में दुनिया के अन्य देशों की तुलना में 12 पायदान और चढ़ गया है। दुनिया भर में भ्रष्टाचार का सूचकांक तैयार करने वाली संस्था ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की ओर से जारी सूची में भारत में भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी की जानकारी दी गयी। रिपोर्ट में दुनिया भर के 180 देशों की सूची में भारत इस वर्ष 85 वें स्थान पर रहा। जबकि पिछले वर्ष भारत का 72वां स्थान था। इसके अलावा दुनिया का सर्वाधिक भ्रष्ट देश सोमालिया रहा। साथ ही डेनमार्क, न्यूजीलैंड और स्वीडन सूची में पहले स्थान पर रहने के कारण विश्व के सबसे ईमानदार देशों के रूप में सामने आये। जबकि सिंगापुर दूसरे और अमेरिका 18वें और ब्रिटेन 16वें स्थान पर रहे। इसके अलावा चीन पिछले वर्ष की तरह 72 वें स्थान पर ही कायम रहा। भ्रष्टाचार के मामले में पाकिस्तान की स्थिति में सुधार नहीं आया है पाकिस्तान इस साल 134 वें स्थान पर है।

Monday, September 22, 2008

लोग आतंकवादी क्यों बनते हैं

सामान्य जन जीवन न जीने वालों में एक बात दिमाग में तब आती है जब वे शहर की चकाचौंध से इतने ज्यादा प्रभावित होने लगते हैं कि रातों रात मालामाल हो जाना चाहते हैं। बस यहीं से शुरू होने लगती है उनकी अग्नि परीक्षा। घर से शहर आते हैं उच्च शिक्षा लेने, लेकिन अधिक महत्वाकांक्षी होने के कारण उन आकाओं के घेरे में फंसने लगते हैं जो रातोंरात पैसों से मालामाल करने का सब्जबाग दिखाते हैं। बस, यहीं से शुरू होता है उन्हें अच्छे या गलत रास्ते पर ले जाने का दौर।आतंकी संगठनों को विस्तारीकरण की योजना के लिए उन्हें ऐसे युवाओं की जरूरत होती है जो उन्हीं के मजहब के हों और आकाओं के दिशानिर्देशन पर काम कर सकें। रातोंरात मालामाल हो जाने की महत्वाकांछा रखने वाले युवा लोग संगठनों के आकाओं को मिल जाते हैं, लेकिन प्रायोगिक तौर पर ऐसा होता नहीं है। एक बार संगठन में आने के बाद निकलना असंभव होता है। उन्हें ऐके 47, ऐके 56 राइफलें पकड़ा दी जाती हैं और फिर शुरू होता है उनका प्रशिक्षण कार्यक्रम। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें समाज में आतंक फैलाने के लिए विभिन्न स्थानों पर भेज दिया जाता है।आतंकवादियों के संगठनों की खास बात यह है कि उनमें मुस्लिम समुदाय के ही लोग हैं। लेकिन वे लोग यह भूल जाते हैं कि जब शहर के बाजारों में बम धमाके होंगे तो उसकी चपेट में जो भी लोग आएंगे हताहत होंगे, उनमें किसी भी जाति, धर्म के लोग हो सकते हैं। फिर कुछ समय बाद पकड़े भी जाते हैं और अदालती कार्यवाही के बाद उन्हें सजा मिलना लाजमी है। जीवन की कीमती उम्र समाप्त हो जाती है। जिन आकाओं ने मालामाल करने के सब्जबाग दिखाए थे, वह अब बहुत दूर हो जाते है। इन आकाओं को तो तुम्हारी जरूरत तभी तक रहती है जबतक कि तुम जिंदा व सुरक्षित रह कर समाज में आतंक फैलाने में लगे रहो।पड़ोसी देश हमारे देश में प्रशिक्षित आतंकवादियों को भेजकर बम धमाके करवा रहा है। निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं। उनके आका इसे सफल कामयाबी बताते हैं। वाह! समाज व राजनीति दो धड़े बन चुके हैं। धमाके होने पर लोग आक्रोश होते हैं जबकि राजनेता सिर्फ दुख व्यक्त करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं। तुष्टिीकरण की राजनीति पर नेता अपना काम करने लगते हैं।मैं तो सिर्फ एक बात जानता हूं कि मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना। फिर यह तालीम किसने उन्हें दी कि मजहब ही सिखाता, आपस में बैर रखना।। कौन हैं इसके जिम्मेदार, ऐसे लोगों को फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए जिससे समाज में सुख-शांति वापस आ सके। साथ ही मैं ऐसे युवाओं का आह्वान करता हूं कि वो लोग ऐसे लोगों के बहकाबे में न आएं। समाज को स्वस्थ्य बनाएं, समाज को सुरक्षित बनाएं।

Friday, September 19, 2008

दिल्ली में पुलिस-आतंकी मुठभेड़, दिल्ली पर फिर दागा निशाना


दिल्ली पर आतंकवादियों का खतरा अभी टला नहीं है। शहर में आतंकियों की मौजूदगी ने आज पूरे दिल्ली को फिर हिला कर रख दिया। मेरे विचार से हर मस्जिद पर सुरक्षा बलों की तैनाती आवश्यक कर दी जानी चाहिए, क्योंकि यह सब नहीं किए जाने का ही परिणाम है कि आज आतंकियों ने फिर से दिल्ली को लक्ष्य बनाने की असफल कोशिश की। दक्षिणी दिल्ली के ओखला के पास जामिया नगर इलाके में स्थित खलीउल्लाह मस्जिद के पास एक घर में छिपे संदिग्ध आतंकवादियों के बीच पुलिस की मुठभेड़ में दो हुजी आतंकवादी ढेर हो चुके हैं और एक पकड़ा गया है। जबकि तीन पुलिसकर्मी घायल हो गए। यह मुठभेड़ दिल्ली में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के एक सप्ताह बाद हो रही है। मुठभेड़ उस समय शुरू हुई जब पुलिस अतीक नाम के आतंकी की तलाश में इलाके में गयी। ऐसा कहा जाता है कि अतीक सिमी कार्यकर्ता तौकीर का दाहिना हाथ है। इस बात की आशंका है कि तौकीर अहमदाबाद बम विस्फोट में शामिल रहा है। वह दिल्ली में हुए आतंकवादी हमले में भी वांछित है। इस सीधे मुठभेड़ से लोगों में डर पैदा हो गया है।दिल्ली दिलवालों की नहीं, बल्कि आतंकियों की नगरी बन चुकी है। यहां पर लोग आतंकियों को पनाह दे रहें हैं उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए। पुलिस सहित कई सुरक्षा बलों को सदैव तत्परता से ड्यूटी निभानी होगी। मैं एक बात और स्पष्ट करना चाहता हूं कि जो नहीं कहनी चाहिए थी, लेकिन परिस्थितियां ही कुछ कह रहीं हैं कि मुसलिम समुदाय पर कड़ी निगरानी की जरूरत है। हर आतंकी संगठन के सारे के सारे सदस्य मुसलिम ही हैं। यह लोग या तो मस्जिद में छिपने का सहारा लेते हैं या फिर घरों में छिपते हैं। पुलिस को अपने गुप्त दूत पूरे शहर में बिछा दिए जाने चाहिए। सुरक्षा बलों को पूरी सतर्कता बरतनी होगी। दिल्ली अभी भी आग के गोले पर खड़ी है।

Wednesday, September 17, 2008

पाटिल के 'पर' कटेंगे पर उड़ते रहेंगे


देश में इस समय आतंकवाद से निपटने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ से बहस छिड़ गई है। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष कोई नया कानून नहीं लाना चाहती है, जबकि सरकार द्वारा बनाई गई मोइली समिति ने स्पष्ट किया कि आतंकवाद से निपटने के लिए देश का मौजूदा कानून काफी नहीं है। नया कानून बनाने का सुझाव दिया है। लालू ने भी सुरक्षा को लेकर सरकार पर हमला बोला। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने तो यहां तक कह डाला कि आगामी लोक सभा के चुनाव में यदि पार्टी सत्ता में आती है तो एक सौ दिन के अंदर पोटा कानून लागू कर दिया जाएगा। इसी मुद्दे को लेकर संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह भी वह सूत्र अपनाने जा रहे हैं कि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए, अर्थात केंद्रीय गृह मंत्रालय को खंडित कर देश की सुरक्षा का भार उसी मंत्रालय के अधीन होगा। उस मंत्रालय का नाम होगा आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय। इससे एक लाभ अवश्य होगा कि शिवराज पाटिल गृह मंत्री बने भी रहेंगे, उनके पर भी कट जाएंगे और आंतरिक सुरक्षा को लेकर जो आवाज उठी है वह दब भी जाएगी। यदि ऐसा नहीं करते हैं तो फिर आगामी संसद के मानसून सत्र में सदन में विपक्षी लोग हंगामा खड़ा कर देंगे। शायद इसीलिए सरकार को अक्ल आयी कि इस मामले को पहले ही निपटा लिया जाए। आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय को पाने के लिए अभी से दौड़ भी शुरू हो चुकी है। अभी तक इस दौड़ में स्टील राज्य मंत्री जितिन प्रसाद और रक्षा राज्य मंत्री पल्लम राजू शामिल हैं।

Tuesday, September 16, 2008

घर मंत्री का घर ही सुरक्षित नहीं


मेट्रो शहरों में हो रहे सीरियल बम धमाकों ने तो लोगों का जीना ही मुश्किल कर दिया। कब किस शहर में धमाके हो जाएं कहना मुश्किल है। भारत के गृह मंत्री (घर मंत्री) के देश (घर) की सुरक्षा ही खतरे में पड़ी है। आए दिन हमले हो रहे हैं। दिल्ली में हमले हो रहे हैं, घर मंत्री अपने घर में पोशाकें बदलने में ध्यान दे रहे हैं। सामान्य तौर पर देखा गया है कि जब किसी पर परेशानी आती है तो लोग कपड़ों पर ध्यान नहीं देते हैं जिस भी अवस्था में लोग होते हैं उसी तरह सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं। हमारे गृह मंत्री पोशाकें बदलने में मस्त थे। शर्म आनी चाहिए थी कि निर्दोष लोग बम धमाकों की चपेट में आकर घायल होकर कराह रहे थे वह अपने घर में शरीर को संवार रहे थे। क्या ऐसा ही देश का गृह मंत्री होना चाहिए। जिसके सुरक्षा बलों तक को यह जानकारी नहीं थी कि दिल्ली भी आतंकियों की चपेट में है। सच ही है जैसा राजा वैसी प्रजा। देश की सुरक्षा-व्यवस्था के बारे में सोचने का समय जब मंत्री के पास ही नहीं है जो सुरक्षा एजेंसियों को निगरानी करने की क्या पड़ी, वह भी मौत-मस्ती कर रही हैं। देश की सुरक्षा भगवान के भरोसे चल रही है। पुलिस और केंद्रीय बल मिलकर सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। और देखिए कांग्रेस पार्टी उन्हें ग्रीन सिगनल भी दे रही है। आखिर दस जनपथ के नजदीकी हैं। सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। सरकारी दामाद बन के सुख भोगिए। सरकार का कार्य बस घोषणा भर रह गया है कि मरने वालों को इतना रुपए और घायलों को इतना रुपए।

गैस कनेक्शन का खत्म हुआ इंतजार

गैस कनेक्शन चाहने वालों को अब ज्यादा इंतजार नहीं करना पडे़गा। इस महीने के अंत तक प्रतीक्षारत सभी लोगों को गैस कनेक्शन उपलब्ध करा दिये जायेंगे। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय और तेल कंपनियों ने यह निर्णय लिया। रसोई गैस का नया कनेक्शन चाहने वालों की प्रतीक्षा सूची आठ लाख तक पहुंच गई थी। इसमें से 4.10 लाख लोगों को कनेक्शन दिये जा चुके हैं, बाकी 3.90 लाख को सितंबर अंत तक नया कनेक्शन मिल जायेगा। तेल कंपनियां ग्राहकों की शिकायतों को निपटाने की प्रणाली को भी और ज्यादा प्रभावी बनाने जा रही हैं। वह दो अक्टूबर तक एक टोल फ्री नंबर की शुरूआत कर सकती हैं, जिसपर देश के किसी भी कोने से ग्राहक अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगे।

Sunday, September 14, 2008

दिल्ली धमाके: सुरक्षा-व्यवस्था को चुनौती


भारत की राजधानी नई दिल्ली में सीरियल बम धमाकों ने दिल्ली को फिर दहला के रख दिया। पुलिस की लचर सुरक्षा व्यवस्था ने ही आतंकियों के हौसले बुलंद किए हैं। वह मौका पाते ही देश के प्रमुख शहरों को लक्ष्य बना रहे हैं। धमाकों के बाद हाई अलर्ट घोषित कर दिया जाता है। सुरक्षा के नाम पर पुलिस वाहनों की चेकिंग करने में जुट जाती है और सीमाएं सील कर वह अपनी औपचारिक पूरी कर लेती है। जब कुछ समय बाद स्थिति सामान्य हो जाती है तो पुलिस अपना कर्तव्य भूल कर अन्य कामों में लगी रहती है। क्यों नहीं सीमाओं पर हमेशा वाहनों की चेकिंग होती है। सामान्य परिस्थितियों में तो आप आराम से दिल्ली में बिना चेकिंग के आ-जा सकते हैं। यदि यही स्थिति रही तो वह नारा खत्म हो जाएगा जिसके लिए कहा जाता है कि दिल्ली दिल वालों की है। जबकि देखा जाए तो दिल्ली अब सामान्य लोगों के लिए सुरक्षित नहीं रह गई है। सुरक्षा के नाम पर यहां कई प्रकार की सुरक्षा इकाईयां मौजूद हैं फिर भी आतंकी सिलसिलेवार बम धमाके करके सुरक्षित निकल गए, यह बड़े शर्म की बात है। नेताओं का तो सिर्फ एक ही रटा-रटाया वाक्य होता है कि मैं इस बम विस्फोटों की कड़े शब्दों में भ‌र्त्सना करता हूं इसके बाद फिर किसी नए शहर में बम धमाके हो जाते हैं। दिल्ली में इसके पूर्व 29 अक्टूबर 2005 में तब हुए थे जब पूरी दिल्ली दीपावली के त्यौहार को मनाने की तैयारी कर रही थी। दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर पांच विस्फोटों में तीस लोग मारे जा चुके हैं। बड़ी दर्दनाक मौतें हुई हैं। एक छात्रा बैंक की परीक्षा देने के लिए बडोदरा, गुजरात से आई थी किंतु कनाट प्लेस क्षेत्र में हुए बम विस्फोट की वह शिकार हो गई। वह हमेशा के लिए सो गई। करोलबाग के गफ्फार मार्केट, कनाट प्लेस और ग्रेटर कैलाश में थोडी-थोड़ी देर के अन्तराल पर विस्फोट हुए। पहला विस्फोट गफ्फार मार्केट में हुआ, इसके तत्काल बाद कनाट प्लेस कनाट प्लेस स्थित गोपालदास बिल्डिंग में दो विस्फोट हुए। एक अन्य विस्फोट दक्षिणी दिल्ली के पाश ग्रेटर कैलाश इलाके में स्थित पार्ट वन के एम ब्लाक मार्केट में हुआ। बम धमाकों की घटना को लेकर पूरे देश में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है।अब प्रश्न उठता है कि दिल्ली आम लोगों के लिए रहने के लिए सुरक्षित रह गई। या फिर नेताओं की नगरी बन कर रह गई। पुलिस बल का अधिक हिस्सा तो नेताओं की तामीरगीरी में लगा रहता है। वह दिल्ली को क्या खाक सुरक्षा प्रदान करेंगे। यहां पर कई प्रकार के इतने अधिक सुरक्षा बल मौजूद हैं फिर भी सीरियल बम धमाके हों, यह बहुत ही शर्म का विषय है।

Wednesday, September 10, 2008

स्टैंडर्ड मार्डन थ्योरी का परीक्षण, धरती को खतरा नहीं


जिनेवा में आज धरती के गर्भ में कराए जाने वाले प्रयोग को लेकर कुछ इस तरह की हवा फैली कि इससे से छोटे-छोटे ब्लैक होल्स पैदा होंगे जो दुनिया को तबाह कर देंगे। फिजिक्स की स्टैंडर्ड मार्डन थ्योरी के अनुसार प्रोटोन विस्फोट करने पर उसमें हिक्स पार्टिकल्स निकले चाहिए। उसी की खोज के लिए यह प्रयोग हो रहा है। हिक्स पार्टिकल्स निकले तो स्टैंडर्ड मार्डन थ्योरी पक्की हो जाएगी और फिजिक्स का भविष्य सुदृढ़ हो जाएगा। नहीं निकले तो वैज्ञानिकों को इस थ्योरी पर फिर से सोचना होगा। इससे धरती को कोई खतरा नहीं है। ब्लैक होल्स में इतनी ताकत होती है कि वे आसपास की वस्तुओं को घसीट कर बड़े होते जाते हैं जिससे धरती नष्ट हो सकती है। इस प्रयोग में पहली बात ब्लैक होल्स बनेंगे ही नहीं और यदि बने भी तो इतने छोटे-छोटे होंगे कि कुछ समय बाद वे खुद नष्ट हो जाएंगे। इसलिए यह आशंका निर्मूल है कि दुनिया खत्म हो जाएगी। प्रयोग में जितनी गति से व जितनी ऊर्जा निकलती है, आकाश से उससे कहीं अधिक ऊर्जा व गति वाली कास्मिक किरणें आती रहती हैं। ये लाखों सालों से आ रही हैं। जब उनसे दुनिया खत्म नहीं हुई तो इस प्रयोग से कैसा भय। वास्तव में ब्लैक होल्स किसी तारे के विकासक्रम का अंतिम बिंदु है, जिस समय उसका आकार सूर्य से दस से पंद्रह गुना ज्यादा हो जाता है। तारे के विशाल आकार ग्रहण कर लेने पर उसमें भयंकर विस्फोट होता है। यह तारे की सुपरनोवा स्थिति कहलाती है। बाहर का कोई भी गुरुत्वाकर्षण बल इसे रोकने में समर्थ नहीं होता है। इस स्थिति में तारे का घनत्व इतना बढ़ जाता है कि कोई भी प्रकाश (फोटान) उसके गुरुत्व क्षेत्र के बाहर ही नहीं जा पाता। तारे के घनत्व के इस अनंत विस्तार को ही ब्लैक होल्स कहा जाता है। आम धारणा है कि ब्लैक होल्स किसी वैक्यूम क्लीनर की तरह हर चीज को अपने अंदर खींच लेता है, लेकिन यह धारणा नहीं है। यदि हमारा सूर्य उतने ही द्रव्यमान के ब्लैक होल्स में बदल जाए तो उससे पृथ्वी की कक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हां, पृथ्वी का तापमान जरूर बड़ जाएगा, लेकिन सौर चुंबकीय तूफान किसी भी तरह से पृथ्वी को नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। कोई भी पिंड या ग्रह तभी ब्लैक होल्स में समायगा जब वह श्वार्जचाइल्ड रेडियस पार कर जाएगा। इसके पार करते ही पिंड की चाल प्रकाश की चाल 5 लाख किलो मीटर प्रति सेकेंड के बराबर हो जाएगी। स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर यह अभूतपूर्व परीक्षण हो रहा है। यह जमीन के एक सौ मीटर गहरे और 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में कई देशों के वैज्ञानिक हैं जिसमें भारत से खगोल वैज्ञानिक गए हुए हैं। इस सुरंग में तापमान माइनस 200 डिग्री सैल्सियस है। इस परियोजना पर लगभग चार खरब रुपए का खर्चा आया है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर 1998 में काम शुरू हो गया था।

Tuesday, September 9, 2008

दोहरी नीति में पिसते गांधी जी


सरकार का भी क्या कहना। महात्मा गांधी के देश में उन्हीं की ब्लेक मेलिंग की जा रही है। गांधी जी का अपमान तो सरे आम हो ही रहा है। यादगार दिन पर सरकारी घोषणा कर बीच का रास्ता अख्तियार करके चलती हैं सरकारें। अब सुनने में आया है कि सरकार गांधी जी के जन्म दिवस दो अक्टूबर को तंबाकू के सेवन करने पर आर्थिक दंड का प्राविधान करने जा रही है। क्या है मजाक नहीं है कि एक तरफ तो धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाने के प्राविधान किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ सिगरेट, बीड़ी, अफीम, गांजा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। सरकार को इस क्षेत्र से अधिक आमदनी होती है। सिगरेट बनाने की कई कंपनियां हमारे देश में हैं। क्यों नहीं उन पर प्रतिबंध लगाया जाता। एक समय तो क्रिकेट के मैदान पर विल्स का खूब प्रचार होता था। फौजी केंटीनों में पनामा सिगरेट की आज भरपूर मात्रा में पूर्ति की जा रही है। लेकिन सरकार को आबकारी से कर के रूप में एक अच्छी खासी कमाई होती है। इस कमाई को वह प्रभावित नहीं करना चाहती है। सिगरेट या फिर बीड़ी के रेपर पर सिर्फ इतना अवश्य लिखा रहता है कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जब हानिकारिक है तो फिर वह बाजार में बिक्री के लिए क्यों उपलब्ध है। सरकार को सबसे पहले इनके उत्पादन बंद करने होंगे तब पब्लिक में जाकर घोषणा करना अच्छा भी लगता है और लोगों में इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है। गांधी जी क्यों जाने जाते हैं, क्योंकि उन्होंने जो कहा वही किया। यदि सरकार की नियत में कोई खोट नहीं है तो उन्हें गांधी जी के सिद्धांतों पर चलकर दिखाना होगा कि सरकार गांधी जी के सिद्धांतों पर चल रही है। क्योंकि गांधी जी नशा सेवन के पूर्ण खिलाफ थे। वह नहीं चाहते थे कि लोग इसके आदी हो जाएं और घर-परिवार लुट जाए। उनकी सोच लोगों के प्रति सकारात्मक थी। लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करना नहीं था। लेकिन सरकार तो खिलवाड़ कर रही है। एक तरफ तो नशा के सेवन पर प्रतिबंध लगा रही है तो दूसरी तरफ इनके उत्पादनों को प्रोत्साहन दे रही है। सरकारी घोषणा के बाद गांधी जयंती के दिन से सरकारी, गैर-सरकारी इमारतों तथा सार्वजनिक स्थलों आदि में धूम्रपान करने वालों को 200 रुपये जुर्माना देना पडे़गा। देश में संशोधित सिगरेट और अन्य उत्पाद अधिनियम-2008 दो अक्टूबर से देशभर में लागू हो जायेगा। सरकारी और गैर-सरकारी भवन और इमारतों तथा सार्वजनिक स्थलों आदि में अगर कोई धूम्रपान करता है तो उसके जिम्मेदार वहां के प्रबंधक या मालिक होंगे। उनको धूम्रपान करने वालों से जुर्माना वसूल करने का अधिकार होगा। पुलिस अधिकारियों के अलावा गैर-सरकारी संगठनों तथा रेलों में चल टिकट परीक्षकों को भी धूम्रपान करने वालों पर कानूनी रूप से जुर्माना लगाने का अधिकार दिया जायेगा।

Monday, September 8, 2008

तुम जिओ हजारों साल


आशा भोसले पुरकशिश आवाज की मल्लिका और उनके गानों ने न केवल छह पीढि़यों का दिल बहलाया बल्कि गायिकी के क्षेत्र में एक नया प्रतिमान भी स्थापित किया। वह आज 75 बसंत पूरे कर रहीं हैं। हर पीढ़ी के दिल की धड़कन रही बहुविध गानों को सुर देने वाली आशा भोसले के प्लेटिनम जुबली के मौके पर सारेगामा इंडिया लिमिटेड प्रिसियस प्लेटिनम नाम से नया एलबम जारी किया है। जब आशा भोसले ने 1948 में गायिकी का सफर शुरू किया था तो फिल्म जगत में शमशाद बेगम, गीता दत्त और लता मंगेशकर पा‌र्श्व गायिकी के क्षेत्र में काबिज थी। हालांकि आशा की आवाज की मधुरता, गाने की अलहदा स्टाइल और उतार चढ़ाव ने पा‌र्श्व गायन में उनका एक अलग मुकाम बना दिया। गाने की स्थिति के साथ आवाज में परिवर्तन करना उनकी एक और खासियत रही है। आशा भोसले ने हिन्दी और मराठी सहित भारतीय भाषाओं में 12 हजार से अधिक गाने गाये। उनके गाये एलबमों ने भी लोगों को बहुत लुभाया और बेहद प्रभावित किया। उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

Saturday, September 6, 2008

भारत को मिली ऐतिहासिक सफलता


भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार से जुड़े अमेरिका परमाणु करार अधिनियम 1954 की धारा 123 में इस बात का उल्लेख है कि अमेरिका उन्हीं देशों से परमाणु करार करेगा जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हों। जबकि भारत परमाणु अप्रसार संधि से बहुत दूर है। लेकिन भारत की खास बात रही है कि उसने परमाणु ऊर्जा का उपयोग शांति के क्षेत्र में किया है। भारत शुरू से ही एक शांति प्रिय देश है। भारत को विएना में अंतरराष्ट्रीय मंच पर आज एक ऐतिहासिक सफलता मिली जब परमाणु सामग्री आपूर्तिकर्ता देश समूह (एनएसजी) ने भारत के खिलाफ पिछले 30 वर्षो से लगे प्रतिबंध हटा लिए। एनएसजी की बैठक में 45 सदस्यीय संस्था ने आज अमेरिका के उस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया जिसमें भारत पर लगी पाबंदियों को हटाने का प्रावधान है। चीन, न्यूजीलैंड और आस्ट्रिया सहित कुछ देशों के विरोध को पार करते हुए भारत ने एनएसजी का समर्थन हासिल किया। एनएसजी के फैसले के बाद भारत अब असैन्य परमाणु कारोबार में शिरकत कर सकेगा। सन् 1974 में पोखरण परमाणु विस्फोट के चार साल बाद सन् 1978 में भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाये गये थे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के लिए जुलाई 2005 में हुए भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु सहयोग समझौते को अमल में लाने के लिए एनएसजी की सहमति अनिवार्य थी जो आज हासिल हो गयी। भारत को अंतरराष्ट्रीय परमाणु बाजार में प्रवेश दिलाने की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की लम्बी मुहिम आज सफल रही जब परमाणु सामग्री आपूर्तिकर्ता देश समूह ने भारत पर लगे प्रतिबंध हटा लिए। एनएसजी की तीन दिन तक चली जद्दोजहद भरी बैठक में गतिरोध और ऊहापोह के बावजूद भारत ने यह महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। एनएसजी की हरी झंडी के बाद परमाणु क्षेत्र में भारत का अलगाव खत्म हो गया तथा उसे परमाणु ऊर्जा, सामग्री और तकनीक के आदान-प्रदान का अधिकार हासिल हो गया।भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु सहयोग समझौते का अब केवल एक चरण शेष है जिसेमं अमेरिकी कांग्रेस को इस समझौते का अनुमोदन करना है। भारत अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए)के साथ निगरानी समझौता पहले ही कर चुका है।1968 में भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर इस आधार पर हस्ताइार करने से इंकार कर दिया कि यह भेदभावपूर्ण है। 18 मई 1974 को भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। 10 मार्च 1978 को अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने परमाणु अप्रसार अधिनियम पर हस्ताक्षर कर भारत को परमाणु सहायता बंद कर दी गई। 11 व 13 मई 1998 को भारत ने पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण किए।34 साल तक प्रतिबंधों की काली रात के बाद भारत के लिए आज तब परमाणु सवेरा हुआ जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भारत पर लगे प्रतिबंधों को हटा लिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु जगत में भारत के अलगाव को दूर करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ जुलाई 2005 में भारत-अमेरिका असैन्य सहयोग समझौता किया था। इस समझौते के एक महत्वपूर्ण चरण में 45 सदस्यीय परमाणु सामग्री आपूर्तिकर्ता देश समूह ने आज भारत से परमाणु प्रतिबंध हटाने की घोषणा की। समझौते की अंतिम औपचारिकता के रूप में अब अमेरिकी कांग्रेस इस पर इसी महीने विचार करेगी तब उसके अनुमोदन के बाद यह समझौता अमल में आएगा।

Thursday, September 4, 2008

शिक्षक समाज के पथ प्रदर्शक है


शिक्षा राष्ट्र निर्माण का आधार है और इससे ही मानव जीवन में उजियाला आ सकता है। शिक्षा के कार्य में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक शिक्षित होकर ही अपना और देश का भविष्य संवार सकता है। शिक्षक शिक्षा का आलोक गांव-गांव में पहुंचाएं। लोगों को शिक्षित करे और इस कार्य में जन भागीदारी बढ़ाने का प्रयास करें। शिक्षक दिवस पर शिक्षक समुदाय को मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं। शिक्षक राष्ट्र व समाज के पथ प्रदर्शक होते हैं। राष्ट्र और समाज की भावी पीढ़ी के निर्माण में शिक्षकों की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। विद्यार्थियों के सर्वागीण विकास के साथ ही उनमें राष्ट्र प्रेम, सामाजिक सद्भाव, अनुशासन, नैतिक एवं चारित्रिक गुणों का विकास करके उन्हें आदर्श नागरिक बनाने मे शिक्षकों का प्रमुख योगदान है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों का दायित्व है कि वे विद्यार्थियों को अज्ञान के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाकर उन्हें आदर्श एवं संस्कारवान नागरिक बनाने का संकल्प लें। असतो मां सदगमय।शिक्षक अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन करें। यही महान दार्शनिक शिक्षाविद तथा पूर्व राष्ट्रपति स्व. डा.एस. राधाकृष्णन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

Wednesday, September 3, 2008

हिंदू-मुस्लिम की एक अनूठी दास्तान


ऐसी मान्यता है कि पूजा-पाठ और सतकर्म व्यर्थ नहीं जाते और उसका फल मनुष्य को एक न एक दिन जरूर मिलता है और खासतौर से ऐसे समय में जब कोई संकट के बीच घिरा हो। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। यही देखने को मिला है बिहार में कोसी नदी से आई बाढ़ ने जहां लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया है, वहीं संकट की इस घड़ी में मानवता के धर्म के चलते सभी मजहबी दीवारें भी ढह गई हैं। सहरसा जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता अपने बाढ़ पीडि़त रोजेदार मुस्लिम भाइयों को पवित्र महीने रमजान में इफ्तार करा रहे हैं। यह नजारा सहरसा के जिला स्कूल परिसर में संघ परिवार के एक घटक सेवा भारती द्वारा चलाये जा रहे एक राहत शिविर का है। यहां रमजान में रोजा रखने वाले मुस्लिम समुदाय के लगभग 100 लोगों को आरएसएस के कार्यकर्ता मगरिब की अजान होते ही मुढी और घुधनी परोस कर उन्हें रोजा इफ्तार करा रहे हैं। इसी राहत शिविर में अपने परिवार के साथ शरण लिए मधेपुरा जिले के परमा गांव निवासी मो. सलाउद्दीन बताते हैं कि वे लोग पिछले करीब एक सप्ताह से यहां हैं और उनके साथ कोई भेदभाव नहीं बरता जा रहा है। ऐसा ही नजारा मधेपुरा स्थित एक मुस्लिम मदरसा के छात्रावास का भी है जहां कुमारखंड और मुरलीगंज के विभिन्न इलाकों से अपनी जान बचाकर आए साठ से अधिक साधु शरण लिए हुए हैं। इन्हें यहां के मुस्लिम शिक्षक और छात्रों द्वारा न केवल उनके आवास और भोजन की व्यवस्था की गयी है, बल्कि उन्हें यहां पूजा पाठ करने के लिए उन्होंने एक खास स्थान भी दे रखा है। मधेपुरा स्थित मदरसा के छात्रवास में शरण लिए एक साधु महेन्द्र साह ने बताया कि उक्त छात्रावास में उन्हें किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं है और यहां के मुसलमान भाइयों ने संकट की इस घड़ी में न केवल उन्हें शरण दी, बल्कि उनकी बहुत मदद की है।

गणपति बप्पा मोरिया, मंगल मूर्ति मोरिया


मुंबई में 10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव के पहले दिन आज गणपति का धूमधाम से जबरदस्त स्वागत किया गया। वि­नहर्ता गणेश की प्रतिमा की स्थापना के साथ ही मुंबई का आकाश गणपति बप्पा मोरिया, मंगल मूर्ति मोरिया के उद्घोष से गूंज उठा। गणेश की भीमकाय प्रतिमा को मंडप में लाया गया और भक्तों ने अपने घरों में पवित्र स्थान पर समृद्धि और बुद्धि के लिये गजराज की प्रतिमा की स्थापना कर उनका स्वागत किया। प्रार्थना के बाद भगवान के प्रिय भोग मोदक का प्रसाद के रूप में वितरण किया गया।समाज के सभी तबकों के लोगों को आपस में जोड़ने के उद्देश्य से सार्वजनिक उत्सव के रूप में गणेश उत्सव को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शुरू किया था। बाद में यह न केवल महाराष्ट्र में बल्कि पूरे भारत में व्यापक रूप मनाया जाने लगा। सबसे प्रसिद्ध गणेश मंडल लालबाउग का राजा है। इस साल यह अपनी प्लेटिनम जुबली मना रहा है। वहीं दूसरी ओर मध्य मुंबई के किंग सर्किल में जीएसबी सेवा मंडल के गणेश भगवान महानगर में सबसे धनी माने जाते हैं। उन्हें आठ करोड़ रुपये मूल्य के 44 किलो सोने के आभूषण और 140 किलो चांदी के आभूषण चढ़ाए जाते हैं। यह मंडल पिछले 54 सालों से गणेशोत्सव आयोजित कर रहा है। गणेश भगवान के मंच तक पहुंचने के लिये हवा में 500 फुट लंबा और पांच फुट चौड़ा रास्ता बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख, केंद्रीय विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे, पूर्व लोक सभा अध्यक्ष मनोहर जोशी, स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर और अभिनेता जितेन्द्र, सलमान खान ने उत्सव के दौरान अपने घरों में गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित की है। इसके अलावा लोक निर्माण मंत्री छगन भुजबल मध्य मुंबई के मजगांव में अपने अंजीरवादी गणेशोत्सव मंडल की हीरक जयंती मना रहे हैं। चेंबूर स्थित आरके स्टूडियो में राजकपूर के परिवार द्वारा पारंपरिक रूप से गणेशोत्सव मनाया जाता है। इस बीच मुंबई में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।

बोलती किताबें


इंटरनेट में रूचि लेने वाले बच्चों के लिए दिल्ली पुस्तक मेला एक नया तोहफा लेकर आया है। बोलती किताबें बच्चों को किताबें सुनने के नये अनुभव से रूबरू करायेंगी। इस वक्त चल रहे दिल्ली पुस्तक मेले में भारतीय भाषाओं में बोलती किताबों की नयी विचारधारा बच्चों को खासा आकर्षित कर रही हैं। मान लीजिए आपकी आंखे किताबें पढ़ने के तैयार नहीं हैं लेकिन एक बोलती किताब खरीदिए जिसमें दादी नानी की तरह कोई आपको कहानी पढ़कर सुनायेगा। आजकल बच्चे इंटरनेट और टेलीविजन से चिपके रहते हैं। अभिभावक इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि बच्चों में पढ़ने की आदत छूट रही है। बच्चों के जीवन से जुड़ी किताबें उन्हें किताबों की ओर आकर्षित करेंगी। यह पुस्तकें इंग्लैंड और अमेरिका में बेहद लोकप्रिय है लेकिन भारत में इसे पहली बार आरंभ किया गया है। लोग मानते हैं कि यह विचारधारा बेहतरीन है, लेकिन एक किताब की कीमत करीब 300 रुपये बहुत अधिक है।

Tuesday, September 2, 2008

होमवर्क से परेशान छात्र


आजकल पब्लिक स्कूलों में एक बात फैशन में आ चुकी है कि पढ़ाओ कम और घर से काम करके लाने को डायरी में निर्देश दे दिए जाते हैं। जब मैं स्वपोषित मान्यता प्राप्त विद्यालय में पढ़ा तब सारे अध्यापक जी जान से क्लास में न सिर्फ खुद मेहनत करते थे, बल्कि छात्रों से भी उतनी ही मेहनत कराते थे। खास तौर से साइंस के छात्रों के प्रति अध्यापक एक-एक शब्द को स्पष्ट करते हुए चलते थे। उस समय न तो ट्यूशन का बोल बाला था और न ही होम वर्क का। सारा काम प्रेक्टीकल था। हर छात्र से कक्षा में ही रोजाना टेस्ट लिया जाता था। इसके बाद नए विषय की जानकारी दी जाती थी। यदि किसी को कोई बात समझ में न आ रही हो तो वह सीधे अध्यापक से पूछ सकता था। अध्यापक खुश होकर उस छात्र को कक्षा में पूरी जानकारी देते थे। क्या मेल था उस समय छात्र और अध्यापक का।आज पब्लिक स्कूलों में फीस भी अधिक लग रही है और पढ़ाई से छात्र क्या उनके माता-पिता भी संतुष्ट नहीं दिखाई देते हैं। इन स्कूलों में महिला अध्यापिकाओं की भीड़ है। यह अध्यापिकाएं प्रशिक्षित भी नहीं होती हैं और स्कूल प्रबंध तंत्र कम वेतन पर इन लोगों को रख लेते हैं। यही अध्यापिकाएं स्कूलों में पढ़ाने के बाद घर पर ट्यूशन भी पढ़ाती हैं। और तो और ट्यूशन में भी होम वर्क दिया जाता है। छात्र होम वर्क करते-करते इतना थक जा रहा है कि वह परेशान है होम वर्क करने से। स्कूल वर्क का चलन घटता जा रहा है। इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं, स्कूल प्रबंध तंत्र या टीचर। प्रबंध तंत्र पैसे कमाने में लगा हुआ है। उसे यह देखने की फुरसत कहां कि वह हर टीचर का ब्यौरा रोज मांगे। आज जरूरत है माता-पिता की जागरूपता। लोगों की जागरूपता के साथ ही सरकार को भी कड़े कदम उठाने चाहिए।