Sunday, October 5, 2008

जब अपने हो जायें बेवफा तो दिल टूटे

अच्छा ही हुआ कि पाकिस्तान की जेलों से लौटने तक वे अपनी सुध बुध खो बैठे अन्यथा वे अपनों की बेवफाई बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसी साल मई में पाकिस्तान जिन भारतीय बंदियों की रिहाई हुई थी उनमें से ही कुछ ऐसे बदनसीब कैदी हैं जिनका नाम लेवा कोई नहीं। इन बंदियों में कुछ मूर्छारोग से पीड़ित है तो कई मूक तथा बधिर तथा याददाश्त खो बैठे। इन्हें पंजाब के पिंगलवाडा अनाथालय में बाकी जिन्दगी काटनी पड़ रही है। ऐसा ही एक अभागा मूर्छारोग से पीड़ित रिषीपाल मानावाला के समीप भगतपुरन सिंह पिंगलवाडा में अपनों के आने की आस लिये हुये कई महीने गुजार चुका लेकिन हिमाचल में उसके गांव से अब तक कोई उससे मिलने तक नहीं आया। किस्मत क्या रूठी अपने भी बेगाने हो गये। पिंगलवाडा के मनोचिकित्सक डा0 गुलशन कुमार के अनुसार प्रशासन ने हिमाचल सरकार से कई बार रिशीपाल के परिवार का पता लगाने के बारे में संपर्क किया लेकिन अब तक कोई सफलता हाथ नहंी लगी। धीरे-धीरे उसकी मानसिक स्थिति खराब होती जा रही है। उसे अपने परिवार के किसी सदस्य की याद तक नहीं है। वह इतना ही कहता है कि वह अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ा था। वह पाक जेल में कैसे पहुंचा इसकी कोई याद नहीं। ऐसे ही तीन और बदनसीब हैं जिन्हें उनके अपनों ने भुला दिया। पिंगलवाडा की मुखिया डा0 इंद्रजीत कौर का कहना है कि हम उनकी देखभाल कर रहे हैं तथा उन्हें घर की कमी खले नहीं ऐसा हमारा प्रयास है। तीन और भी हैं जो स्वदेश लौटकर अपने घर का अता पता भूल गये हैं।

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत दुखद!