Thursday, October 2, 2008

अहिंसा के पुजारी ही बने हिंसा के शिकार


देश और दुनिया को हिंसा और आतंक से मुक्ति तथा समृद्धि के लिए जीवन भर लड़ाई लड़ने वाला खुद ही हिंसा का शिकार हुआ। रामराज्य का ले आउट तैयार कर चुके थे, किंतु यह ले आउट लागू नहीं हो सका। दिमाग में परिकल्पनाएं राष्ट्रहित की थी, किंतु उनके देहावसान के बाद सारी की सारी योजनाएं धरी की धरी रह गयीं। आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जन्म तिथि है। नेता लोग उनकी समाधि पर जाकर दो फूल चढ़ा देते हैं। स्कूलों, बाजारों में बंदी रहती है। क्या कभी किसी नेता ने सोचा कि वह उसी समय आतंक, हिंसा को खत्म करना चाहते थे। इसका मतलब साफ है कि उस समय भी इस तरह की घटनाएं हो रही थीं। गांधी जी इनकी समाप्ति चाहते थे किंतु वह खुद भी हिंसा के शिकार हुए। गांधी जी के बाद कोई ऐसा ताकतवर नहीं मिला देश को जिसने हिंसा और आतंक की जड़ों का नामोनिशान मिटा दिया हो। उसके बाद तो इंदिरा गांधी, राजीव गांधी भी हिंसा की शिकार हुए। आज भी देश में ही नही बल्कि विश्‍व में हिंसा और आतंक की घटनाएं जारी हैं। क्या कारण है कि विश्‍व स्तर पर भी कोई ऐसा नेता पैदा नहीं हुआ जिसने निर्दोंषों की हत्या करने वाले आतंकी संगठन का पूरी तरह तहस नहस कर दिया हो। आखिर ऐसा क्यों नहीं हो सका। इसमें अब तक क्यों सफल नहीं हो सके। विश्‍व को जबाव देना पड़ेगा। यदि गांधी जी के द्वारा छोड़े गए अधूरे कार्यो को तभी से पूरा कार्य करने का एक अभियान चलाया होता तो अब तक पूरे हो गए होते। योजनाएं तो बनी किंतु उन्हें सफलतापूर्वक क्रियांवित नहीं हुयीं। गांधी जी के नाम पर लोगों को ठगा गया और लोग ठगते चले गए। आखिर कब तक लोग ठगते रहेंगे। हिंसा, आतंकवाद, गरीबी, अशिक्षा, गांवों में आधे अधूरे विकास यह सब मुंह जबानी बोल रहें हैं कि देश अभी भी इन्हीं सबसे पिछड़ा हुआ है। आखिर कब तक पिछड़ा रहेगा। क्या नेता लोगों को संतुष्ट कर पाएंगे। मुझे उम्मीद है सत्य अहिंसा दया करूणा और परोपकार जैसे सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्यों पर आधारित गांधी जी के विचार और आदर्श सम्पूर्ण मानवता के लिए हमेशा उपयोगी और प्रासंगिक बने रहेंगे।

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