Saturday, April 11, 2009

मतदाता एक जुट होकर अपना निर्णय दें

लोकतंत्र में जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा शासन वाली व्यवस्था होती है, लेकिन यदि नजदीक से देखा जाए तो यह सूत्र अब काम का नहीं रहा। लोकतांत्रिक व्यवस्था चरमरा गई है। देश में चल रहा आम चुनाव में देखा और सुना जा रहा है कि कोई भी दल विकास, शिक्षा, बेरोजगारी, कृषि पर चर्चा न करके एक दूसरे पर टीका-टिप्पणी करने में मशगूल हैं। क्या यही लोकतंत्र की स्वस्थ्य परंपरा है। नेता लोगों ने ही एक स्वस्थ्य लोकतंत्र को बीमार लोकतंत्र बना दिया है। नेताओं के जुबानों से जो शब्द निकल कर बाहर आ रहे हैं, सुनकर शर्म आती है। एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हुए हैं। अब तो विकास के मुद्दे गौण हो चुके हैं। ऐसे नेताओं को संसद की सीढि़यां चढ़ने का कतई हक नहीं बनता। क्षेत्रीय जनता से मेरी गुजारिश है, मेरा अनुरोध है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए कमर कस कर आगे आएं और जो किसी भी दल का प्रत्याशी आपके पास वोट मांगने आता है, तो प्रत्याशी के बारे में पूरा ब्यौरा जानने का आपको पूरा हक बनता है और यदि निवर्तमान सांसद है तो पिछले पांच सालों में उसके द्वारा किए गए कार्यो का समीझा करके ही सही निर्णय करें। इन दिनों प्रत्याशी लोकलुभावन वादे करते हैं और चुनाव जीत जाने पर पांच साल तक क्षेत्रीय सांसद का चेहरा देखने तक के लिए लोग लालायित रहते हैं और उनके दर्शन होना दुर्लभ हो जाते हैं। यदि पिछले चुनाव में सही प्रत्याशी नहीं चुन पाए हों तो अब मौका आ गया है भ्रष्ट, लोकतंत्र को बदनाम करने वाले पार्टियों के उम्मीदवारों को सबक अवश्य सिखाएं। क्योंकि लोकतंत्र में देश का सर्वोच्च पंचायत भवन 'संसद' में जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही बैठते हैं और वे ही लोग कानून बनाते हैं और बिगाड़ते भी हैं। आज का नेता इतना स्वार्थी हो गया है कि जब देख लेता है कि अपने क्षेत्र में स्थिति संतोषजनक नहीं है तो अन्य क्षेत्रों में भाग्य आजमाने पहुंच जाते हैं और कुछ नेता तो पहुंच भी गए हैं। सोचने वाली बात है जो नेता अपना नहीं हो सका तो भला दूसरों का कैसे हो सकता है। स्वार्थपूर्ण नेतृत्व कभी भी लोकतंत्र को स्वस्थ नहीं बनाए रख सकता है। इसलिए मैं तो क्षेत्रीय मतदाताओं से यही कहना चाहूंगा कि चुनावी दंगल में लड़ रहे नेता रूपी पहलवान में से किसी एक ऐसे नेता को चुने जिसमें नेतृत्व करने की वास्तविक क्षमता हो। दलबदलू नेताओं को तो धूल चटा दीजिए। जो फिर से मुड़ कर आपके क्षेत्र में न आ सकें। चुनावी दंगल में मतदाताओं को ही निर्णय देना है। एक जुट हो कर अपना निर्णय दें जिससे लोकतंत्र की जड़े पांच साल हिल न सकें।

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