Sunday, August 2, 2009

राखी के बंधन को निभाना


इंतजार करते-करते आ गया रक्षाबंधन। प्यारी-प्यारी राखी अपने भाई की कलाई पर बांधने के बाद किसी भी बहन को इंतजार रहता है तो सिर्फ उस नेग का जिसे वह बेसब्री से इंतजार करती है। राखी की सबसे लोकप्रिय कथा राजनीतिक हित सिद्धि से जुड़ी है। जब ग्रीस के राजा सिकंदर और हिंदू राजा पोरस के बीच युद्ध मैदान में सिकंदर की पत्‍नी ने राजा पोरस को राखी के रूप में धागा भेजकर यह नेग मांगा कि आप मेरे पति सिकंदर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। पोरस ने किया भी ऐसा ही था। उसने राखी की लाज रखी और युद्ध मैदान से हट गया। महाभारत युद्ध की शुरूआत में ही द्रोपदी ने कृष्ण को राखी बांधकर भाई मान लिया था और कृष्ण ने महाभारत युद्ध में पांडवों का साथ दिया था। बाली भगवान विष्णु का परम भक्त था, एक दिन उसने विष्णु से कहा कि आप मेरे राज्य से निकल जाइए। यह सुनकर भगवान विष्णु की पत्‍‌नी लक्ष्मी जी दुखी हुई क्योंकि वह घर नहीं छोड़ना चाहती थीं। लक्ष्मी जी बाली के पास राखी का धागा लेकर पहुंची और बाली के कलाई पर बांध दिया और नेग मांगा कि आप घर छोड़ने के लिए नहीं कहेंगे। बाली खुद विष्णु के पास गया और कहा कि आप घर नहीं छोड़ेंगे। सोलहवीं सदी में राजस्थान के चित्तौड़ घराने की रानी कर्णवती ने मुस्लिम शासक हुमायूं को राखी के रूप में रेशमी धागा तब भेजा था जब गुजरात का बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की धमकी दी थी। राखी पाकर हुमायूं चित्तौड़ को बचाने के लिए गया था, लेकिन तब तक चित्तौड़ लुट चुका था। चित्तौड़ की रानी समेत 1,30,000 राजपूत महिलाओं के साथ जौहर अर्थात आत्महत्या कर ली थी।रक्षाबंधन सावन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में इसे राखी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। जबकि पश्चिमी भारत महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात में नारियल पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। देश के केंद्रीय हिस्सों में कजरी पूर्णिमा के नाम से लोग पर्व मनाते हैं। दक्षिण भारत में इसे अवानी अविट्टम, उपकर्म के नाम से मनाते हैं। गुजरात के कुछ हिस्सों में इसे पवित्रोपड़ के नाम से मनाते हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं।भारत देश इतना बड़ा है कि एक ही पर्व अनेक नामों से जाना जाता है। भाई और बहनों का अब यह पर्व आधुनिक बनता जा रहा है।अब बहनें अपने भाइयों से अच्छे उपहारों की उम्मीद रखती हैं। यदि चार भाई हैं और तीन भाई इस दिन को बहिन को अच्छा उपहार देते हैं, चौथा भाई की स्थिति अच्छी नहीं है वह शर्म की वजह से बहिन के घर जाने में संकोच करता है। सच्चाई तो यह है कि इन कीमती उपहारों ने राखी के बंधन के महत्व को कम करके उपहार बंधन का रूप धारण कर लिया। राखियां भी अब सादा नहीं रहीं। हम चाहते हैं कि यह त्योहार फिर से वही रूप ले जो पहले जाति-धर्म से हटकर बहनें अपनी रक्षा के लिए भाई की कलाई पर सिर्फ एक धागा बांधती थी। भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

आप को रक्षाबंधन की बधाई।अच्छा आलेख है।