Tuesday, August 18, 2009

जसवंत पर सवार जिन्ना का भूत




शराब और विलायती कपड़ों के बेहद शौकीन मुहम्मद अली जिन्ना ने वकालत के पेशे में जल्दी नाम कमा लिया था। 1896 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने। मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हुई थी किंतु जिन्ना 1913 में इसमें शामिल हुए। कांग्रेस में वे जब तक रहे उन्हें धर्मनिरपेक्ष माना जाता रहा, जो हिंदू-मुस्लिम एकता की लगातार बात करता था। कांग्रेस में सात साल रहकर जब जिन्ना ने 1920 में पार्टी यह कर छोड़ी कि गांधीजी के जनसंघर्ष का सिद्धांत हिंदू-मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ाएगा। इस जनांदोलन से खाई पैदा होगी। मुस्लिम लीग ने अपने पैतरें बदले और कर डाली अलग चुनाव क्षेत्र की मांग, जबकि पंडित जवाहर लाल नेहरू संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने के पक्षधर थे। जिन्ना जब नहीं माने और धर्म व जाति के नाम पर एक समझौता हुआ। 1937 में हुए सेंटल लेजिस्लेटिव असेंबली चुनाव में मुस्लिम लीग ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर देते हुए ज्यादातर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों पर कब्जा किया। 1930 के दशक में जिन्ना मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग करने लगे। 1937 में मुस्लिम लीग को पुनर्गठित कर 1940 में लाहौर प्रस्ताव पारित कर अलग देश बनाने की औपचारिक मांग तक कर डाली।जिन्ना कहीं से धर्मनिरपेक्ष नहीं लगते हैं। राजनैतिक फायदे के लिए उन्होंने धर्म का इस्तेमाल किया। पाकिस्तान बनाने के बाद जिन्ना ने कहा था कि अब यहां पर हर नागरिक सिर्फ पाकिस्तानी होगा। पंडित नेहरू ने कहा था कि जिन्ना उस शख्स की याद दिलाते हैं, जो अपने मां-बाप का कत्ल करके अदालत से इस बुनियाद पर माफी चाहता है कि वह यतीम है।फिर भाजपा नेता जसवंत सिंह को क्या सूझी थी कि उन्होंने जिन्ना को भारत का अभिन्न मित्र और पंडित नेहरू और सरदार पटेल को देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। अपनी सफाई में वह कहते हैं कि पांच साल के शोध के बाद मैंने यही पाया कि जिन्ना भारत के अभिन्न मित्र थे। इसका प्रस्तुतीकरण उन्होंने जिन्ना पर लिखी किताब में किया। इससे भाजपा में इनकी किरकिरी हो रही है। यहां तक कि भाजपा की भी बदनामी हो रही है। अब पार्टी ने जसवंत से दूरियां बनानी शुरू कर दी हैं। शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने यहां तक की दिया कि क्या जिन्ना जसवंत के रिश्तेदार लगते हैं। भाजपा में इसके पूर्व भी जिन्ना को लेकर घमासान मच चुका है जब लालकृष्ण आडवानी को पार्टी के अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा था। आखिरकार भाजपा के नेता लोग जिन्ना का महिमामंडप क्यों करते हैं।भारतीय जनमानस के पटल पर देश के विभाजन के लिए जिन्ना को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है।जिन्ना-इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंस नाम से जसवंत सिंह ने किताब लिखी है। धर्म के नाम पर जिन्ना और भाजपा का कोण एक जगह जरूर टकराता है। भाजपा भी धर्म के आड़ में राजनीति करती चली आ रही है। जिन्ना ने भी धर्म के नाम पर राजनीति की और मुसलमानों को एक जुट कर पाकिस्तान बना डाला। उनको धर्मनिरपेक्ष भारत पसंद नहीं आया। इस बंटवारे से जन और धन की जो हानि हुई थी उसे आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं। धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को कभी भी धर्मनिरपेक्ष नहीं कहा जा सकता है। सोमवार को किताब का विमोचन भी हो चुका है। मुझे तो शर्म आती है कि जसवंत को क्या सूझी थी कि उन्होंने जिन्ना पर लिखी किताब में उनका महिमामंडप किया। इससे उनका कदम छोटा अवश्य हुआ। उन्होंने जिस उद्देश्य से यह किताब लिखी है वह तो पूरा नहीं होगा।

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