Sunday, August 23, 2009

रहमत और बरकत से भरे रमजान के महीने का आगाज


चंद्र कैलेंडर पर टिका रमजान: मुस्लिम रमजान के लिए चंद्र कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं। रमजान उस कैलेंडर का नौंवा महीना है। चंद्र वर्ष 365 दिन के सौर वर्ष से छोटा होता है, लिहाजा पश्चिमी कैलेंडर के मुताबिक रमजान कुछ पहले शुरू हो जाता है।रोजा की वर्जनाएं: स्वस्थ्य और वयस्क लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी ग्रहण नहीं करते। पानी भी नहीं। रोजे की हालत में यौन संबंध और धूम्रपान वर्जित होता है। रोजा में रोजमर्रा के कामकाज में कोई रुकावट नहीं है। हां, यह हो सकता है कि काम के घंटे कम कर दिए जाएं।रोजे की वजह: कुरान के मुताबिक हर स्वस्थ्य मुस्लिम का यह धार्मिक कर्तव्य है। इससे व्यक्ति का शुद्धिकरण होता है और उसका ईमान पुख्ता होता है।उत्सव का माहौल: सूर्योदय के पहले हल्का खाना खाया जाता है। सूर्योदय के बाद इफ्तार और लोग नमाज पढ़ने के लिए एकत्र होते हैं। शाम को उत्सव जैसा माहौल होता है।ईद से अंत: ईद-उल-फिज के साथ ही रमजान खत्म हो जाता है। लोग नमाज पढ़ते हैं और एक-दूसरे को को तोहफे देते हैं।रहमत और बरकत से भरे रमजान के महीने का आगाज हो चुका है। मोमिनों को अल्लाह से प्यार और लगन जाहिर करने के साथ खुद को खुदा की राह की सख्त कसौटी पर कसने का मौका देने वाला यह महीना बेशक हर बंदे के लिए नेमत है। रमजान में दिन भर भूखे-प्यासे रहकर खुदा को याद करने की मुश्किल साधना करते रोजेदार को अल्लाह खुद अपने हाथों से बरकतें नवाजता है।यह महीना कई मायनों में अलग और खास है। अल्लाह ने इसी महीने में दुनिया में कुरान शरीफ को उतारा था जिससे लोगों को इल्म और तहजीब की रोशनी मिली। साथ ही यह महीना मोहब्बत और भाईचारे का संदेश देने वाले इस्लाम के सार तत्व को भी जाहिर करता है।रोजा न सिर्फ भूख और प्यास बल्कि हर निजी ख्वाहिश पर काबू करने की कवायद है। इससे मोमिन में न सिर्फ संयम और त्याग की भावना मजबूत होती है बल्कि वह गरीबों की भूख-प्यास की तकलीफ को भी करीब से महसूस कर पाता है। रमजान का महीना सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत करने में मददगार साबित होता है। इस महीने में सक्षम लोग अनिवार्य रूप से अपनी कुल सम्पत्ति का एक निश्चित हिस्सा निकालकर उसे जकात के तौर पर गरीबों में बांटते हैं।रमजान की शुरुआत सन दो हिजरी से हुई थी और तभी से अल्लाह के बंदों पर जकात भी फर्ज की गई थी।मजान के महीने में अल्लाह के लिए हर रोजेदार बहुत खास होता है और खुदा उसे अपने हाथों से बरकत और रहमत नवाजता है।इसमें बंदे को एक रकात फर्ज नमाज अदा करने पर 70 रकात नमाज का सवाब (पुण्य) मिलता है। साथ ही इसमें शबे कद्र की रात में इबादत करने पर एक हजार महीनों से ज्यादा वक्त तक इबादत करने का सवाब हासिल होता है।कुरान शरीफ में लिखा है कि मुसलमानों पर रोजे इसलिए फर्ज किए गए हैं ताकि इस खास बरकत वाले रूहानी महीने में उनसे कोई गुनाह नहीं होने पाए। उन्होंने कहा कि यह खुदाई असर का नतीजा है कि रमजान में लगभग हर मुसलमान इस्लामी नजरिए से खुद को बदलता है।नई पीढ़ी के मुसलमानों में भी रमजान के प्रति श्रद्धा और आस्था में कोई कमी नहीं आई है।

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