Thursday, September 3, 2009

वंचितों का मर्म समझते थे, हार को भी हरा देते थे


पेशे से डाक्टर रहे सच्चे और करिश्माई नेता एदुगुरी संदिंती राजशेखर रेड्डी लोगों की नब्ज पकड़ कर उनका मर्म ही नहीं मस्तिष्क तक समझने में माहिर थे और उनकी इसी विशेषता ने लाखों किसानों और मजदूरों को उनका मुरीद और आंध्र प्रदेश के सर्वोच्च पद को उनके लिए सहज बना दिया। गांव गरीब और किसान के प्रति उनका प्रेम ही 'हार को भी हराने वाले' वाईएसआर के लिए जीवन की बाजी हारने का सबब बना। अपनी अंतिम यात्रा से ठीक पहले उन्होंने मीडिया से कहा था कि मैं सूखा राहत कार्यक्रम का जायजा लेने के लिए गांवों का औचक निरीक्षण करने की योजना बना रहा हूं। आंध्र प्रदेश के कडप्पा संसदीय क्षेत्र से चार बार लोकसभा और पुलिवेंदुला से पांच बार आंध्र प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए राजशेखर रेड्डी 20 मई 2004 को राज्य के मुख्यमंत्री बने और पांच वर्ष के पहले कार्यकाल में किसानों और गरीबों के लिए शुरू की गई उनकी विकास योजनाओं ने राज्य की तस्वीर बदलने का काम किया। इसी का नतीजा था कि वह विकास की पतवार थामे एक बार फिर जनता के सामने पहुंचे और चुनावी वैतरणी पार कर गए। उन्हें इसी वर्ष 20 मई को एक बार फिर राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। सुलझे हुए और इन्सानी जज्बात को समझने वाले राजशेखर रेड्डी के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का रास्ता नेता कभी मुश्किल नहीं रहा। उन्होंने सही समय पर सही फैसले किए और कदम दर कदम सत्ता के शीर्ष की ओर बढ़ते रहे।
वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव की तैयारी के तौर पर वाईएसआर ने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में समाज के सबसे निचले वर्ग तक अपनी पैठ बनाने के लिए 2003 में 1400 किलोमीटर की पदयात्रा की और उनके सीधे सादे व्यक्तित्व ने लोगों के दिलों में घर कर लिया। अगले ही वर्ष उनके नेतृत्व में कांग्रेस विधानसभा चुनाव लड़कर सत्ता तक जा पहुंची। आंध्र प्रदेश के पुलिवेंदुला में वीएस राजा रेड्डी और जयम्मा के यहां आठ जुलाई 1949 को जन्मे राजशेखर को समाजसेवा का जज्बा विरासत में मिला और उन्होंने अपने छात्र जीवन से ही राजनीति के गुर सीख लिए। एमआर मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान वह छात्र संघ के नेता बने और एसवी मेडिकल कालेज तिरूपति में हाउस सर्जन एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। राजशेखर रेड्डी की धवल छवि, गहरी समझ, प्रशासनिक कौशल और उससे भी अधिक हर काम को पूरे समर्पण से करने की उनकी ईमानदारी ने उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता का रास्ता दिखाया। एमबीबीएस करने के बाद वह जम्मालामदुगु मिशन अस्पताल में कुछ समय के लिए मेडिकल आफिसर के पद पर रहे। 1973 में उन्होंने अपने पिता के नाम पर पुलिवेंदुला में 70 बिस्तर का एक अस्पताल बनवाया जो आज भी चल रहा है। वाईएसआर को क्षेत्र के लोगों के इलाज के दौरान ही यह समझ में आने लगा था कि दरअसल पूरे समाज को ही इलाज और देखभाल की जरूरत है। इसीलिए उन्होंने 1978 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा। उनकी सेवा भावना और गरीबों की समस्या को दूर करने की ललक का ही नतीजा है कि उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन के दौरान जितने भी चुनाव लड़े, उन्हें किसी में भी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा। उनके प्रशंसक ही नहीं बल्कि उनके विरोधी भी कहा करते थे कि वाईएसआर हार को भी हरा देते हैं।राजशेखर 1980 से 1983 के दौरान मंत्री रहे और ग्रामीण विकास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मंत्रालय संभाले। इसके बाद उनका राजनीतिक कद और बढ़ गया और उन्हें 1983 में आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। वह 1985 तक इस पद पर रहे। 1998 से 2000 के बीच भी उन्होंने पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का पद संभाला। 1999 से 2004 के बीच वह राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे हर तरह की बनावट और लाग लपेट से दूर वाईएसआर के व्यक्तित्व में दूर से ही भारतीयता का ओज दिखाई देता था। अपने दिल की जबान बोलने वाले राजशेखर रेड्डी हमेशा हैंडलूम की धोती और कुर्ता पहनते थे। प्रशासनिक कामकाज और राजकाज के कामों में माहिर राजशेखर रेड्डी सामाजिक और कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में किसी तरह की ढील बर्दाश्त नहीं करते थे और सीधी सादी जबान बोलकर सीधी सादी जनता के सीधे दिल तक पहुंच जाते थे।

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