Monday, October 5, 2009

कोर्ट के साथ पॉलिटिक्स मत करो


सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश की मायावती को करारी झाड़ लगाई। सुप्रीम कोर्ट के आ
देश के बावजूद मूर्तियों के निर्माण का काम न रोके जाने के मामले पर अदालत ने नाराजगी जाहिर की। जस्टिस बी. एन. अग्रवाल और जस्टिस आफताब आलम की बेंच ने यूपी सरकार को लताड़ते हुए कहा कि हमारे साथ इस तरह व्यवहार मत कीजिए जैसे आप असेंबली में करते हैं। कोर्ट अपना राजनीतिक विरोधी मत समझिए। यहां आपको कोई पॉइंट नहीं बनाने हैं। बेंच ने सरकारी प्रतिनिधि सतीश चंद्र मिश्रा और हरीश साल्वे से कहा कि सरकार ऐसा व्यवहार कर रही है, जैसे तर्कहीन भीड़ करती है, जिसे कानून की कोई परवाह नहीं होती। कोर्ट ने कहा कि भीड़तंत्र और लोकतंत्र में यही फर्क होता है कि लोकतंत्र संविधान के आधार पर काम करता है। उन्होंने कहा कि आदेश के बावजूद निर्माण का काम जारी रखकर सरकार ने कोई समझदारी का परिचय नहीं दिया है। अब कोर्ट को भी समझ में आ गया कि मायावती की कथनी और करनी में बहुत अंतर है। आखिर ऐसी क्या बात है कि 2600 करोड़ रुपए के भारी भरकम बजट को मूर्तियों के निर्माण पर खर्च कर रही हैं, वो भी तब जब प्रदेश सूखे की चपेट में है। किसान दर-दर की ठोकरें खाते फिर रहें हैं। एक मायने में देखा जाए तो कांशीराम इतने बढ़े राष्ट्रीय नेता भी नहीं थे कि उनके लिए इतना भारी भरकम बजट को उनकी मूर्तियां बनाकर खर्च कर दिया जाए। प्रदेश के विकास की गाड़ी होले-होले भी नहीं बढ़ रही है। किसान आंदोलन कर रहे हैं कि उनकी जमींने प्राधिकरण जबरन छीन रही हैं, उद्योग लगाने के नाम पर, वह निजी बिल्डर्स को बेंच रहीं हैं। नोएडा में तो किसानों पर नंगा नाच हो रहा है। किसानों की कृषि योग्य भूमि को सरकार जबरन हथिया रही है। किसानों के पास जब जमीन ही नही रहेगी तो वह किसान फिर क्या करेंगे। किसान अपनी जमीन को किसी और को बेंचते है और उस पर बाकादा रजिस्टर्ड मकान बनते हैं तो कहा जाता है कि वह अवैध कालोनी है, इसी से सरकार से नाराज होकर अब किसान एक जुट होकर सड़क पर आकर सरकार के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया है। जब मायावती सरकार देश की सबसे बड़ी कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट को धोखा दे सकती है तो फिर किसान किस खेत की मूली है।

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