Thursday, October 8, 2009

हुड्डा का फैसला दांव पर

हरियाणा विधानसभा चुनाव के मतदान की तारीखें नजदीक आने के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेंद सिंह हुड्डा के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ने लगी हैं। समयपूर्व चुनाव करवाने का हुड्डा का फैसला दांव पर लगा है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 90 में से 67 सीटें जीती थीं। हालांकि कांग्रेस इस बार भी सबसे आगे है और उसे बहुमत मिलने की संभावनाएं बताई जा रही हैं। मगर हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में 10 में से 9 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के लिए पिछले विधानसभा की सफलता दोहराना मुश्किल लग रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद हुड्डा ने कांग्रेस हाईकमान को राज्य में छह माह पूर्व विधानसभा चुनाव करवाने पर राजी कर लिया था। लेकिन कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों, महंगाई और इंडियन नैशनल लोकदल के चीफ ओमप्रकाश चौटाला के परिवार से लोगों की नाराजगी कम होने से कांग्रेस की संभावनाओं पर विपरीत असर दिखने लगा है। गोहाना मुख्यमंत्री हुड्डा का घर है। बुधवार को यहां हुड्डा ने एक बड़ी सभा की। हुड्डा ने खासतौर से कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों से जनता को होशियार किया। सोनीपत , रोहतक और झज्जर के इस जाट बहुल इलाके के नतीजे ही तय करेंगे कि हुड्डा पिछले साढ़े चार साल में जाट लैंड में कितने बड़े जाट नेता बन पाए हैं। एआईसीसी (ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी) ने गोहाना में प्रमुख जाट नेता डॉ. नरेश कुमार को ऑब्जर्वर बना कर भेज रखा है। कांग्रेस के बागी उम्मीदवार किताब सिंह मलिक इस इलाके में कांग्रेस के लिए मुसीबत बने हुए हैं। हालांकि नरेश कुमार मलिक को ज्यादा अहमियत देने से बचने की कोशिश करते हैं, मगर उनका लगातार वहीं डेरा डालने रखना बताता है कि कांग्रेस को स्थिति की गंभीरता का अंदाजा है। हरियाणा में तीनों लालों, बंसी लाल, देवी लाल और भजन लाल की राजनीति खत्म होने के बाद हुड्डा को वहां साढ़े चार साल काम करने का मौका मिला। पिछले विधानसभा चुनाव के बारे में हरियाणा में कहा जाता है कि लोगों ने कांग्रेस को जिताने के लिए नहीं बल्कि चौटाला को हराने के लिए वोट किया था। इस बार हुड्डा को अपने काम पर लोगों की मुहर लगवानी है। नरेश कुमार ने सभा में हुड्डा के काम को एक नया एंगल देते हुए कहा कि पिछले दिनों दिल्ली का विकास यूपी की दिशा में हो रहा था मगर हुड्डा ने वापस दिल्ली का मुंह हरियाणा की तरफ मोड़ दिया। विकास की धारा को कुंडली ( सोनीपत) की और खींच कर लाने के काम को जारी रखने के लिए उन्होंने कांग्रेस को वापस लाने की अपील की। विधानसभा का यह चुनाव चौटाला के लिए राजनीतिक जीवन-मरण का सवाल है। साथ ही जाट नेता कौन का भी यक्ष प्रश्न है? चौटाला के लगातार कमजोर होने के बाद से हुड्डा खुद को जाटों का सबसे बड़ा नेता मानने लगे हैं। सर छोटू राम के बाद देवीलाल इस इलाके में बड़े कद के नेता रहे। यह चुनाव हुड्डा और चौटाला में से किसी एक का कद बढ़ाने जा रहा है।

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