Sunday, January 17, 2010

वामपंथ का मजबूत स्तंभ ज्योति बसु नहीं रहे


भारत में वामपंथ की बात अगर की जाए तो ज्योति बसु एक ऐसा नाम है जिसके बिना इतिहास अधूरा रह जाए। पश्चिम बंगाल में दक्षिणपंथी दलों का वर्चस्व तोड़ वहां वामपंथी शासन कायम करने वाले इस राजनेता ने 23 साल तक न केवल उस राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाला बल्कि वहां अनेक कांतिक्रारी परिवर्तन किए। देश में सबसे लंबे समय तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले ज्योति बसु ने आज यहां एक अस्पताल में अंतिम सांस लीं। एक जनवरी को उन्हें निमोनिया की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन पिछले कुछ दिन से उनके अधिकांश अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा जा रहा था। आज सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे उन्होंने अपनी आंखें मूंद लीं। बसु के निधन के साथ ही देश में वामपंथी आंदोलन का एक अध्याय समाप्त हो गया और उनके निधन से पैदा हुए शून्य को भर पाना शायद ही संभव हो। 95 वर्षीय बसु ने लंदन के मिडिल टेम्पल में वकालत त्याग कर राजनीति को अपनाया और वह लगभग पांच दशक तक देश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाए रहने वाले एक ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व थे जिन्हें दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी दलों के नेताओं ने भरपूर सम्मान दिया। वर्ष 1977 में मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाममोर्चा सरकार के अगुवा के रूप में राज्य की सत्ता संभालने वाले बसु पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक समय तक इस पद पर रहने वाले मुख्यमंत्री थे। गठबंधन की राजनीति के तहत जब उन्हें 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार का प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया तो उनकी पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी और पार्टी ने सत्ता में भागीदारी करने से ही इंकार कर दिया। इस पेशकश को स्वीकार नहीं करने को बाद में बसु ने 'ऐतिहासिक गलती' करार दिया था। पार्टी ने उनके इस विचार को हालांकि उनका व्यक्तिगत विचार बताते हुए इसे खारिज कर दिया।बसु मा‌र्क्सवाद में पूरी तरह विश्वास करने के बावजूद व्यवहारिक थे और पार्टी की कट्टर विचारधारा के बीच उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में विदेशी निवेश और बाजारोन्मुख नीतियां अपना कर अपने अद्भुत विवेक का परिचय दिया था। कुशल राजनीतिज्ञ, योग्य प्रशासक सुधारवादी और अनेक मामलों में नजीर पेश करने वाले बसु को 1952 से पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता लगातार हासिल करने का श्रेय जाता है। इसमें एक बार केवल 1972 में व्यवधान आया था। बसु ने पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से लागू कर निचले स्तर तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया। पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और वर्ष 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था। बसु की पहल पर लागू किए गए भूमि सुधारों का ही नतीजा था कि पश्चिम बंगाल देश का ऐसा पहला राज्य बना जहां फसल कटकर पहले बंटाईदार के घर जाती थी और इस तरह वहां बिचौलियों की भूमिका खत्म की गई। बसु ने राज्य को एक मजबूत उद्योग नीति भी दी। उन्होंने केन्द्र राज्य संबन्धों को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए आवाज उठाई जिसके चलते अस्सी के दशक के अंत तक सरकारिया आयोग का गठन किया गया। उन्होंने गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को एकजुट कर केन्द्र के समक्ष अपनी मांगें भी रखी थीं। बसु ने राज्य में लोकतंत्र के दायरे में रहते हुए पार्टी को मजबूत करने के लिए भी अपने सहयोगियों और कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया।कोलकाता में आठ जुलाई 1914 को जन्मे बसु ने सेंट जेवियर्स स्कूल से इंटर पास करने के बाद 1932 में प्रेसीडेन्सी कॉलेज से अंग्रेजी में ऑनर्स किया। वर्ष 1935 में वह विधि की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गए। पांच साल बाद वह भारत लौटे और राजनीति की राह चुनी। उन्होंने 1941 में विवाह किया लेकिन कुछ ही महीनों में उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद 1948 में उन्होंने दोबारा विवाह किया जिनसे उनके एक पुत्र है। उनकी पत्नी का कुछ वर्ष पूर्व निधन हो चुका है। वर्ष 1957 में बसु विपक्ष के नेता बने और अगले दस साल तक उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ इस दायित्व का निर्वाह किया। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ने भी विपक्ष के नेता के रूप में बसु की भूमिका की तारीफ की थी। वर्ष 1967 में पहली बार बसु पश्चिम बंगाल के उप मुख्यमंत्री बने। राजनीति का सफर बढ़ता गया और इस माकपा नेता ने एक के बाद एक कई उपलब्धियां हासिल कीं। इस दौरान उन्होंने राज्य में मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और वाममोर्चा दोनों को भी लगातार मजबूत किया।

1 comment:

Randhir Singh Suman said...

कामरेड़ ज्योति बसु को लाल सलाम!