Sunday, March 7, 2010

महिला आरक्षण : संसद में इतिहास रचने की तैयारी

संसद में इतिहास रचने की तैयारी की जा रही है क्योंकि सोमवार को राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक को विचार और पारित किए जाने के लिए पेश किया जाएगा। कांग्रेस, भाजपा तथा वाम दलों ने जहां इसका समर्थन करने का ऐलान किया है वहीं इस विधेयक के विरोधियों के बीच मतभेद खुल कर सामने आ गए हैं।पिछले करीब डेढ़ दशक से आम सहमति का इंतजार कर रहे इस विधेयक की राह राज्यसभा से बन रही है जहां इस पर सोमवार को चर्चा होनी है। इस विधेयक को उच्च सदन में मंजूरी मिलना लगभग तय है क्योंकि कांग्रेस, भाजपा, वामदलों के अलावा अन्य छोटे दल जैसे तेदेपा, द्रमुक, अन्नाद्रमुक, अकाली दल और नेशनल कांफ्रेंस ने इसका समर्थन करने का ऐलान किया है।राज्यसभा की सदस्य संख्या 245 है लेकिन 12 रिक्तियों की वजह से सदन के सदस्यों की संख्या 233 हैं। इन 12 रिक्तियों में छह नामांकित सदस्यों के लिए रिक्तियां शामिल हैं।बिहार के मुख्यमंत्री और जद [यू] नेता नीतीश कुमार ने अचानक रुख बदल कर विधेयक के पक्ष में आवाज उठाई और विपक्ष को झटका दे दिया है।राज्यसभा में विधेयक का विरोध करने वाले सदस्यों की संख्या 26 से भी कम है क्योंकि जद [यू] में नीतीश कुमार के बयान के बाद गहरे मतभेद नजर आ रहे हैं।महिला आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक को मतदान के दौरान सदन में विशेष बहुमत के लिए 155 मतों की जरूरत होगी। फिलहाल विधेयक के पक्ष में 165 से अधिक सदस्यों का समर्थन नजर आ रहा है।विधि एवं न्याय मंत्री एम वीरप्पा मोइली 'संविधान [108 वां संशोधन] विधेयक' को विचार विमर्श के लिए सदन में पेश करेंगे। महिला आरक्षण विधेयक के नाम से जाना जाने वाला यह विधेयक संयोगवश आठ मार्च को सदन में पेश करने का फैसला किया गया है जिस दिन दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाएगी।एक खास बात यह भी है कि आठ मार्च, 2010 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के सौ साल पूरे हो रहे हैं। इस विधेयक में लोकसभा और राज्यों की विधायिकाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है।महिला आरक्षण विधेयक के विरोधियों ने इसके खिलाफ 'युद्ध' का ऐलान कर दिया है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जद [यू] प्रमुख शरद यादव ने इस विधेयक के वर्तमान स्वरूप पर अपना विरोध बरकरार रखा है। यह दल इस विधेयक में पिछड़े वर्गो और मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं।राज्यसभा में कांग्रेस के 71 सदस्य, भाजपा के 45, माकपा के 15, अन्नाद्रमुक के सात, राकांपा के पांच, द्रमुक के चार, बीजद के चार, तेदेपा के दो, तृणमूल कांग्रेस के दो और फारवर्ड ब्लॉक का एक सदस्य है। इन सभी दलों ने विधेयक के लिए अपना समर्थन जताया है। सदन में अकाली दल के तीन सदस्य हैं। अकाली दल ने पहले ही विधेयक के प्रति अपने समर्थन की घोषणा कर दी है।विधेयक पर विचार-विमर्श से पूर्व सरकार ने इसके विरोधियों का समर्थन जुटाने के लिए एक स्वर में इसका समर्थन करने की अपील की तथा इसके विभिन्न पहलुओं पर बातचीत करने का आश्वासन दिया है।संसदीय मामलों के मंत्री पी के बंसल ने बताया कि उन सभी से यह अपेक्षा, उम्मीद और अपील है कि हमें इस महत्वपूर्ण विधेयक का इसके वर्तमान स्वरूप में समर्थन करना चाहिए। कानून के बहुत अच्छे पहलू हैं। अगर किसी के पास कोई और विचार हैं तो उन पर हम बाद में बात कर सकते हैं।कांग्रेस और भाजपा ने अपने-अपने सदस्यों को विधेयक का समर्थन करने के लिए व्हिप जारी किया है। भाकपा नेता डी राजा ने कहा है कि उन्होंने पार्टी सदस्यों से सदन में मौजूद रहने के लिए कहा है। माकपा नेताओं ने भी ऐसा ही किया है।संसदीय मामलों के मंत्री की तरह ही राजा भी मानते हैं कि अगर समर्थन करने वालों की संख्या पर गौर करें तो विधेयक की राह में कोई बाधा नहीं आएगी। राजा ने कहा कि द्रमुक, अन्नाद्रमुक, तेदेपा और बीजद आदि दल भी विधेयक का समर्थन कर रहे हैं।राजा से पूछा गया कि क्या आठ मार्च को संसद में 'रेड लेटर' डे होगा क्योंकि यह विधेयक लोकसभा में महिलाओं और पुरुषों की संख्या ही बदल देगा। इस पर भाकपा नेता ने उम्मीद जताई कि 'यह एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण निर्णय होगा और उन्हें कोई समस्या नजर नहीं आती।बहरहाल, विधेयक का विरोध करने वालों की संख्या कम है और इसे मूल्यवृद्धि, ईधन के दामों में वृद्धि जैसे मुद्दों को लेकर कायम विपक्षी एकता को तोड़ने का कांग्रेस का एक प्रयास समझा जा रहा है।राज्यसभा की सदस्य संख्या 245 है लेकिन 12 रिक्तियों की वजह से फिलहाल सदन के सदस्यों की संख्या 233 हैं। इन 12 रिक्तियों में छह नामांकित सदस्यों के लिए रिक्तियां शामिल हैं।विधेयक को संसद में पेश करने के प्रयास पिछले 13 साल से नाकाम होते रहे हैं। इसका विरोध करने वाले दल महिलाओं के लिए लोकसभा और विधायिकाओं में 33 फीसदी आरक्षण के कोटे के अंदर पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण का कोटा तय करने की मांग कर रहे हैं।वर्ष 1997 में लोकसभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के हाथों से उनकी ही पार्टी जनता दल के सदस्यों ने विधेयक की प्रतियां छीन कर फाड़ दी थीं। जनता दल तत्कालीन संयुक्त मोर्चा सरकार की अगुवाई कर रहा था।राजग के कार्यकाल में तत्कालीन विधि मंत्री राम जेठमलानी ने जब लोकसभा में यह विधेयक पेश करना चाहा तब भी इसके विरोधियों ने इसकी प्रतियां फाड़ डालीं थीं।यह स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस और भाजपा में इस विधेयक के लिए श्रेय लेने की होड़ मची है। अब ऐसा लगता है कि यह विधेयक सोमवार को सदन में पेश होने से पहले ही एक पड़ाव पार कर चुका है क्योंकि इसके धुर विरोधी और आलोचक जद [यू] में मतभेद खुल कर सामने आ गए हैं।

2 comments:

अजय यादव said...

सवर्णों के 'भारत माता की जय'हो। दलितों-पिछड़ो-आदिवासियों और मुसलमानों का यह देश तो कभी रहा नहीं। थोड़ी आपके पास बुद्धि है तो देश के लोकतंत्र के लिए सकारात्मक तर्क कीजिए, आपकी यह खुशी इस देश के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। पढ़े और अपना कुतर्क दें-www.kathphodwa.blogspot.com पर

अनुनाद सिंह said...

यह केवल इतिहास नहीं रचेगी, बहुत ही क्रान्तिकारी होगा यह कदम। दुनिया में 'यथास्थितिवाद' ही सबसे घातक 'वाद' है।