Wednesday, February 2, 2011

1810 में उतार लिया गया था ताज का स्वर्ण कलश

ताजमहल के शिखर पर लगा स्वर्ण कलश ठीक दो सौ वर्ष पूर्व 1810 में उतारा गया था। ठीक दो सदी पहले की यह घटना अपने समय का सबसे चर्चित और ऐसा वाकया थी जिसे अंग्रेज पूरी तरह गुपचुप रखना चाहते थे। बाद में 1811 में इस कलश की जगह तांबे का कलश लगवाया गया जिस पर सोने का पानी चढ़ा था।
हटाए गए सोने का कलश चालीस हजार तोले यानि लगभग चार सौ किलो सोने का था। यह कलश तीस फुट छह इंच ऊंचा था। इसके हटाए जाने का मुख्य कारण ईस्ट इंडिया कंपनी के खजाने के लिए धन जुटाया जाना था। हालांकि ईस्ट इंडियाकंपनी के रिकार्ड में इस आय का कोई साक्ष्य नहीं मिलता।
उतारे गए स्वर्ण कलश का सोना लुट गया। स्वर्ण कलश को हटाये जाने के बाद लगाये गये कलश को अब तक 1876 और 1940 में दो बार और बदला गया। इस प्रकार वर्तमान में ताजमहल के गुंबद पर लगा हुआ कलश बदले जाने के क्रम में चौथा है। जो भी कलश ताजमहल की शोभा बना वह मूल कलश की ही प्रतिकृति है।
कलश की ऊंचाई और आकार के बारे में अक्सर होने वाली पूछताछ के चलते 1888 में ताजमहल के बायीं ओर बने मेहमान खाने के चबूतरे पर काला पत्थर इस्तेमाल कर मूल कलश की अनुकृति बनवा दी गई जो अब भी मौजूद है।
मूल गुंबद से कलश उतरवाने का कार्य आर्थिक लोभ से जरूर किया गया किंतु ईस्ट इंडिया कंपनी के खजाने को इससे कोई लाभ नहीं हुआ। यह बात लोगों से गुंबद की मरम्मत के नाम पर छुपाई गई। राजे के मुताबिक दो सौ साल पहले सोने के कलश को उतरवाने का काम जहां कंपनी सेना में कार्यरत जोजेफ नाम के अधिकारी ने किया था वहीं इसकी काले पत्थर की अनुकृति आगरा के कलाकार नाथू राम ने बनाई।

Monday, January 24, 2011

राष्ट्रमंडल खेलों ने अर्श से फर्श पर पहुंचाया कलमाड़ी को

राजनीति, रक्षा और खेल मामलों में मजबूत पकड़ वाली शख्सियत के रूप में चर्चित सुरेश कलमाड़ी के लिए राष्ट्रमंडल खेल बतौर खेल प्रशासक उत्कर्ष बिंदु थे लेकिन यही खेल कलमाड़ी के जीवन पर ऐसा धब्बा लगा गए जिसे मिटाने में शायद उन्हें वर्षो लग जाएंगे। खेल प्रशासक के रूप में कलमाड़ी के कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन रहा लेकिन इन खेलों में भ्रष्टाचार और अनियमिताओं के आरोपों से वह इतने बुरी तरह घिरे कि उन्हें पहली बार जीवन में हर कदम पर नीचा देखना पड़ा। कलमाड़ी पिछले 15 साल से भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं और इस दौरान उन्होंने देश में एफ्रो एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन करवाया लेकिन लगता है कि 67 वर्षीय खेल प्रशासक की कार्यशैली ही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन बन गई क्योंकि विभिन्न खेल महासंघों में काबिज उनके साथियों ने उन पर 'तानाशाह' होने का आरोप लगाया।
कलमाड़ी को आज राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति से बर्खास्त किया जाना खेल प्रशासक के तौर उनके कैरियर के अंत का संकेत माना जा रहा है। वह अब भी खेलों से जुड़ी संस्थाओं में कई पदों पर काबिज हैं जिनमें आईओए प्रमुख है।
कलमाड़ी 19वें राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी के लिए नई दिल्ली की दावेदारी पेश करने वाली समिति के अध्यक्ष थे।
भारत में कई राजनीतिज्ञों की तरह कलमाड़ी भी पिछले लंबे समय से खेल और राजनीति दोनों नावों पर सवार हैं। अभी पुणे से लोकसभा सदस्य कलमाड़ी 1996 से भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं। उन्हें वर्ष 2008 में चौथी बार इस पर चुना गया और उनका कार्यकाल वर्ष 2012 तक का है। यदि खेल मंत्रालय की कार्यकाल संबंधी दिशानिर्देश लागू होते हैं तो फिर कलमाड़ी आगे इस पर काबिज नहीं हो पाएंगे।
वर्ष 1982 से वर्ष 2004 तक चार बार राज्यसभा सदस्य और क्क्वीं तथा क्ब्वीं लोकसभा के सदस्य रहे कलमाड़ी वर्ष 2001 से लगातार एशियाई एथलेटिक्स संघ के अध्यक्ष हैं। वह वर्ष 1989 से 2006 तक भारतीय एथलेटिक्टस संघ के भी अध्यक्ष रहे जिसके बाद उन्हें इस संघ का आजीवन अध्यक्ष बना दिया गया।
कलमाड़ी की अध्यक्षता में ही वर्ष 2003 में हैदराबाद में एफ्रो एशियन गेम्स का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। वर्ष 2008 में पुणे में हुए राष्ट्रमंडल युवा खेल भी कलमाड़ी की ही अध्यक्षता में आयोजित हुए।
एक मई 1944 को जन्मे कलमाड़ी की शिक्षा पुणे के सेंट विंसेंट हाई स्कूल और फिर फर्गुसन कालेज में हुई। वर्ष 1960 में वह खड़कवासला, पुणे में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हुए जिसके बाद उन्होंने 1964 में एयर फोर्स फ्लाइंग कालेज, जोधपुर में प्रवेश किया। कलमाड़ी ने 1964 से 72 तक वायु सेना में अपनी सेवाएं दीं और भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके सराहनीय सेवाओं के लिए आठ पदकों से नवाजा गया।

Saturday, January 15, 2011

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता है बेमिसाल

दुनियाभर में आधुनिकता और सहिष्णुता की शिक्षा के प्रचार प्रसार के बावजूद मजहबी कट्टरपन बढ़ रहा है और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं। हालांकि भारत के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता और दूसरे देश भारत की धार्मिक स्वतंत्रता को बेमिसाल मानते हैं।
धार्मिक स्वतंत्रता पर निगरानी रखने वाली अंतरराष्ट्रीय समिति के अनुसार कट्टरपंथी ताकतें अपने धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर दूसरे धर्म के अनुयायियों को दबाने की कोशिशें करती रहती हैं। विशेषज्ञ पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कबाइली इलाकों को इस बात का जीता जागता उदाहरण करार देते हैं जहां कट्टरपंथी तालिबान कभी अल्पसंख्यक सिखों को भयभीत करता है तो कभी उदार मुसलमानों को निशाना बनाता है। शियाओं की मस्जिदों और पीर-फकीरों की मजारों पर हमले कर निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार देता है।
धार्मिक स्वतंत्रता निगरानी समिति ने हाल ही में भारत में भी धार्मिक स्वतंत्रता का अध्ययन किया और कहा कि इस मामले में कुल मिलाकर भारत की स्थिति अच्छी है। समिति ने कहा कि भारत के लोग उदार हैं और अल्पसंख्यक निर्भीक होकर अपने धर्म का पालन करते हैं। उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। कुछ राज्य सरकारें धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनाकर धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने की कोशिश करती हैं।
भारत धार्मिक स्वतंत्रता का जीता जागता उदाहरण है जहां सभी धर्म और संप्रदायों के लोग बिना किसी डर के अपने धार्मिक कार्य कलापों को अंजाम देते हैं।
देश में हालांकि कभी कभार धर्म के नाम पर दंगे हो जाते हैं लेकिन इनके पीछे धार्मिक स्वतंत्रता को दबाने का उद्देश्य नहीं होता। अमेरिका जैसा देश भी भारत की धार्मिक सहिष्णुता की दाद देता है। हाल ही में विकीलीक्स द्वारा सार्वजनिक किए गए एक गोपनीय अमेरिकी राजनयिक संदेश से भी विदेशों में भारत की धर्म निरपेक्ष छवि स्पष्ट हो जाती है।
अमेरिका भारत की धर्म निरपेक्षता से सीख ले सकता है जहां बहु धर्मीय बहु संस्कृति औ बहु जातीय समाज है तथा सभी स्वतंत्रता के साथ जीते हैं और अपने धार्मिक कार्यकलापों को स्वतंत्र होकर संपन्न करते हैं।
आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सूडान, इराक, यमन, नाइजीरिया और इनके अतिरिक्त बहुत से मुल्कों में हिंसा चरम पर है जिसके पीछे कहीं न कहीं धार्मिक कट्टरपन जिम्मेदार है।
भारत में धर्म के नाम पर कभी कभार दंगे बेशक होते हों, लेकिन फिर भी किसी की धार्मिक स्वतंत्रता पर कभी आंच नहीं आती जिसका श्रेय भारतीय जनमानस की उदारता और देश के संविधान को दिया जाना चाहिए।

एक और काली 14 जनवरी

केरल के सबरीमाला में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कल की 14 जनवरी एक बार फिर काली साबित हुई। इसके पहले यहां दो बार 14 जनवरी को हादसे हो चुके हैं।
इस धार्मिक स्थल पर 14 जनवरी को पहली दुर्घटना 1952 में हुई। इस दिन यहां पटाखों के कारण आग लग गई, जिससे भगवान अयप्पा के 66 भक्तों की मौत हो गई।
14 जनवरी 1999 को पंपा में 'मकर ज्योति' के दर्शन के बाद मची भगदड़ में 52 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी। कल की तरह उस दिन भी यहां बहुत भीड़ थी। उस समय मरने वाले ज्यादातर लोगों में आंध्र प्रदेश के निवासी शामिल थे।
'मकर ज्योति' के दर्शन के लिए लाखों लोग यहां जमा होते हैं।
साल 1998 के हादसे के बाद सरकार भीड़ प्रबंधन के लिए कड़े उपाय कर रही है और इसके लिए वैज्ञानिक तरीके भी अपना रही है। इसी के परिणामस्वरूप इस बार श्रद्धालुओं की तीर्थ यात्रा का अब तक का समय हादसों से मुक्त रहा था।